Saturday, August 13, 2011

बस यूँ ही...

झरे है बरखा की बूँदें...
देखे है मन अखियों को मूंदें...

झरना वो अरमानो का बह चला...
प्रवाह रास्ता अपना ढूँढे...

लड़ी सी लग पड़ी संगीत की...
खिलती है होठों पे हसी मानो ओस की बूँदें...


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