Tuesday, December 28, 2010

बस यूँ ही...!!!

शरद का एक पत्र गालों को छू गया... 
जैसे भुझता हुआ दीप फिर जी गया...
लाया वो यादों की ऐसी आंधी...
मन उस झंझा में कहीं खो गया...

कुछ ऐसी चली खुश्क़ हवा,
सिल्वटी लभ भी मुस्करा गया ...
वरुण झरता वह पाती का ,
क्यूँ सपनो का संचय हो गया???
                                       ......वर्षा :-)

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